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Showing posts from December, 2015

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों / गोपालदास "नीरज"

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है। माला बिखर गयी तो क्या है खुद ही हल हो गयी समस्या आँसू गर नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है। खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी जैसे रात उतार चांदनी  पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिकन न आई पनघट पर, लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर, तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों! लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, तूफानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बन्द न हुई धूल की, नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों! कुछ मुखड़ो...

है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये / गोपालदास "नीरज

है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए

मेरा नाम लिया जाएगा / गोपालदास "नीरज"

आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा

फेसबुक पर स्त्री / रंजना जायसवाल

कुछ ने संस्कृति के लिए खतरा बताया कुछ के मुँह में भर आया पानी कुछ ने बेहतर कहा तो कुछ ने सिर-दर्द कुछ हँसे - इनके भी विचार ? कुछ सपने देखने लगे कुछ दिखाने लगे कुछ के हिसाब से प्रचार था कुछ के विचार कुछ दबी जुबान व्यभिचार भी कह रहे थे हैरान थी स्त्री इक्कीसवीं सदी के पुरुषों की मानसिकता जानकर देह से दिमाग मादा से मनुष्य की यात्रा में नहीं है पुरुष आज भी उसके साथ कुछ को उसने फेसबुक से हटा दिया हटने वाले कुछ झल्लाए कुछ इल्जाम लगाए कुछ चिल्लाए-एक औरत की ये मजाल! स्त्री ने भी नही मानी हार सोच लिया उसने बदल कर रहेगी वह फेसबुक की स्त्री के बारे में पूर्वाग्रहियों के विचार|

अपना काम

उनके केबिन में काम को लेकर मार्टिन लूथर किंग की एक खूबसूरत बात लिखी हुई थी- ‘अगर किसी को सड़क साफ करने का काम दिया जाए, तो सफाई ऐसी करनी चाहिए, जैसे महान चित्रकार माइकल एंजेलो पेंटिंग कर रहे हों, जैसे विश्वविख्यात संगीतकार बीथोवेन संगीत रचना में जुटे हों या शेक्सपीयर कोई कविता लिख रहे हों।’ वह अपने मातहतों को यह बताने से नहीं चूकते कि उन्होंने अपना करियर घर-घर चीजें बेचने से शुरू किया था। बस वह हर काम में सर्वश्रेष्ठ देते रहे।  कोई भी काम हो, उसमें सर्वश्रेष्ठ देना हमारी प्रकृति में होना चाहिए। ऐसा हम तभी कर सकते हैं, जब हर काम को हम अहमियत दें। यहां टॉलस्टॉय को आदर्श के रूप में देख सकते हैं। वह सामंत थे, पर एक बार उन्होंने कुली का भी काम किया और उससे मिले पैसे को खुशी-खुशी जेब के हवाले कर दिया। अभिनेता मनोज बाजपेयी ने भी एक साक्षात्कार में कहा कि वह अगर छोटे रोल को गंभीरता से नहीं करते, तो कभी इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते, जहां वह आज हैं। वह आगे कहते हैं कि जिन्हें छोटा काम समझा जाता है, वही जीवन के मील के पत्थर होते हैं। इसी तरह द मैजिक ऑफ थिंकिंग बिग जैसी पुस्तक के लेखक डेविड ...

शौक के लिए

अपने शौक को मरते हुए देखना बहुत कष्टप्रद है, लेकिन ऐसा अक्सर होता है। आपाधापी वाले दौर में तो अपने जीविकोपार्जन की जुगत में ही लोग ऐसे लगे होते हैं कि समय नहीं बचता। एक उपाय है कि शौक को ही करियर बना लिया जाए, लेकिन कम ही लोग ऐसा कर पाते हैं। हम शौक को उतनी अहमियत नहीं देते, जितनी उसे मिलनी चाहिए। यही कारण है कि शौक पीछे छूटता जाता है और हम इतने आगे बढ़ जाते हैं कि इसके लिए हमारे पास कोई जगह नहीं होती। क्या हमारी दिशा सही है? नहीं, जिंदगी में आखिर तक शौक की जगह होनी चाहिए। व्यस्तता चाहे जितनी हो, शौक जिंदा रहे तो जिंदगी खूबसूरत बनी रहती है। विंस्टन चर्चिल उम्र के 80वें पड़ाव में भी अपने शौक को थामे रहे। उन्होंने न सिर्फ लैंडस्केप की पेंटिंग में महारत हासिल की, बल्कि लेखन के शौक को भी जिंदा रखा। उन्हें जब साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला, तो वह बिलकुल भी नहीं चौंके। बस इतना ही कहा कि अपने शौक को कोई भी अगर गंभीरता से ले, तो ऐसा कर सकता है। चर्चिल सिगार और हैट जमा करने के अपने शौक के लिए भी जाने जाते हैं। यहां जिश्नू दासगुप्ता की बातों पर गौर करना चाहिए। जिश्नू कहते हैं कि शौक के लिए कुछ...

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है                                                हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है                                           शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा                                           कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है                                            ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे                                           ...

शाम से आँख में नमी सी है || गुलज़ार|| Beauty of Hindi poetry||Gulzar

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते.. मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते.. सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं.. मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते.. मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे.. तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो.. मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं.. मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं.. हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से.. सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं.. है नहीं स्वीकार दया अपनी भी.. तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो.. मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..  शर्म के जल से राह सदा सिंचती है.. गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है.. शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है.. मंजिल की मांग लहू से ही सजती है.. पग में गती आती है, छाले छिलने से.. तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..  मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..  फूलों से जग आसान नहीं होता है.. रुकने से पग गतीवान नहीं होता है.. अवरोध...

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं ||दुष्यंत कुमार || Beauty of Hindi ...

दुष्यंत कुमार - हो गयी है पीर पर्वत सी|| Ho gyee hai peer parwat see || ...

एक आंसू भी न कर बेकार

एक भी आंसू न कर बेकार जाने कब समंदर मांगने आ जाए। पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है और जिस के पास देने को न कुछ भी एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है कर स्वयं हर गीत का श्रंगार जाने देवता को कौन सा भा जाय। चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण किंतु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं हर छलकते अश्रु को कर प्यार जाने आत्मा को कौन नहला जाए। व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की काम अपने पाँव ही आते सफर में वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में हर लहर का कर प्रणय स्वीकार जाने कौन तट के पास पहुँच जाए।

Aage Safar tha aur Pichhe humsafar tha ||आगे सफर था और पीछे हमसफर था|| B...