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शौक के लिए

अपने शौक को मरते हुए देखना बहुत कष्टप्रद है, लेकिन ऐसा अक्सर होता है। आपाधापी वाले दौर में तो अपने जीविकोपार्जन की जुगत में ही लोग ऐसे लगे होते हैं कि समय नहीं बचता। एक उपाय है कि शौक को ही करियर बना लिया जाए, लेकिन कम ही लोग ऐसा कर पाते हैं। हम शौक को उतनी अहमियत नहीं देते, जितनी उसे मिलनी चाहिए। यही कारण है कि शौक पीछे छूटता जाता है और हम इतने आगे बढ़ जाते हैं कि इसके लिए हमारे पास कोई जगह नहीं होती। क्या हमारी दिशा सही है? नहीं, जिंदगी में आखिर तक शौक की जगह होनी चाहिए। व्यस्तता चाहे जितनी हो, शौक जिंदा रहे तो जिंदगी खूबसूरत बनी रहती है। विंस्टन चर्चिल उम्र के 80वें पड़ाव में भी अपने शौक को थामे रहे। उन्होंने न सिर्फ लैंडस्केप की पेंटिंग में महारत हासिल की, बल्कि लेखन के शौक को भी जिंदा रखा। उन्हें जब साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला, तो वह बिलकुल भी नहीं चौंके। बस इतना ही कहा कि अपने शौक को कोई भी अगर गंभीरता से ले, तो ऐसा कर सकता है। चर्चिल सिगार और हैट जमा करने के अपने शौक के लिए भी जाने जाते हैं। यहां जिश्नू दासगुप्ता की बातों पर गौर करना चाहिए।

जिश्नू कहते हैं कि शौक के लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा हो, तो जीवन रंगीनियों से भर उठता है, और शौक का मरना सपनों के मरने से भी खतरनाक है। जिश्नू अभी म्यूजिक बैंड स्वरात्मा के गिटारिस्ट हैं। उन्होंने अपने शौक के लिए 20 लाख के पैकेज वाली नौकरी छोड़ दी। शौक पूरा करने से जो आनंद और सुकून मिलता है, वह काम से हासिल नहीं हो सकता। निशक्तता के बावजूद एक विशेष कुर्सी और कैमरे से फोटोग्राफी के शौक को पूरी करने वाले डेविड कांस्तांतिनो कहते हैं- काम हमारी जेब की जरूरतें पूरी करता है, जबकि शौक हमारी रूह की। हमें दोनों का दामन थामे रखना चाहिए।

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